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विश्वास नगर जा कर नव आस जगाते हैं / रंजना वर्मा
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विश्वास नगर जाकर नव आस जगाते हैं।
जो साथ बनाते हैं वह साथ निभाते हैं॥
हैं श्वांस जहाँ बसती वह देह नगर जानो
हम नेह नगर जैसा इक ख्वाब सजाते हैं॥
सपना न बिसर जाये कुछ यतन करो ऐसा
ये स्वप्न सलोने ही तकदीर बनाते हैं॥
है आस कली मन की बन फूल रही देखो
हम आस सुमन चुन कर शृंगार रचाते है॥
रसधार बहा देते घनश्याम सलोने जब
वंशी मधुर सुरीली तब श्याम बजाते हैं॥
हैं झूठ कहा करते कुछ लोग जमाने में
सच बोल नहीं पाते बस झूठ भुनाते हैं॥
हैं मूल्य नये अपने अनुसार बना लेते
कुछ लोग गले ऐसे जन को न लगाते हैं॥
अन्याय फैल जाता घनघोर धरा ऊपर
जब लोग बुरे लोगो को पास बिठाते हैं॥
आसान बहुत होता घर फूँकना किसी का
सज्जन सदा धधकती वह आग बुझाते हैं॥