भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वृक्ष सभी नाच रहे / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
देखो तो - वृक्ष सभी नाच रहे
कैसा यह मौसम है
हरी-भरी धरती का
लगता है, महापर्व हो रहा
कल उठा बवंडर था
सागर यह आज शांत सो रहा
नेह-मन्त्र पत्ते सब बाँच रहे
कैसा यह मौसम है
रात-ढले दूधिया हवाओं ने
पत्तों को घेरा है
बरगद की फुनगी पर
महागरुड़ पक्षी का रात से बसेरा है
दिन पिछली थाती को जाँच रहे
कैसा यह मौसम है
आँगन में हरसिंगार के नीचे
फूल झरे हैं झरझर
कैसे सह पाएगी इस सारे उत्सव को
साँस हुई है जर्जर
हम झरते फूलों को आँच रहे
कैसा यह मौसम है