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वो जब लुट—पिट गया तो ज्ञान आया / जहीर कुरैशी

वो जब लुट—पिट गया तो ज्ञान आया
निकट संबंधियों का ध्यान आया

उसे मरने से पहले थी ज़रूरत
मरण के बाद लाखों दान आया

पुलिस के सामने मुँह कैसे खोलूँ
मैं अपने ‘दोस्त’ को पहचान आया

वो सबके सामने नंगी खड़ी थी
हुआ ‘शो’ खत्म तो परिधान आया

मेरे भीतर उठा है ज्वार —भाटा
कभी मन में अगर तूफान आया

पचहत्तर फीसदी वे खा गए, तब—
हमारे हाथ में अनुदान आया

तो दोनों को ही इसका लाभ होगा
कला के घर अगर विज्ञान आया