भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो जो इस बार हमनवां हो जाएँ / सिया सचदेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो जो इस बार हमनवां हो जाएँ
हम भी ख़ुशियों से आशना हो जाएँ

मेरी आँखों के बहते सागर में
डूबने वाले लापता हो जाएँ

तुझसे बिछड़े तो इक दिए की तरह
फिर धुवाँ बन के हम फ़ना हो जाएँ

ठोकरों में है ज़िन्दगी अपनी
हम तेरे घर का रास्ता हो जाएँ

दर्द को दिल में इस तरह रक्खें
किसी गूंगे की हम सदा हो जाएँ

गाँव में कुछ वजूद भी है "सिया"
शहर में जाके लापता हो जाएँ