वो तुम्हारी बे-रुख़ी वो बे-तुकी ख़ामोशियां / अनु जसरोटिया
वो तुम्हारी बे-रुख़ी वो बे-तुकी ख़ामोशियां
ये हमारी बेबसी, आंसू भरी ख़ामोशियां
अब तो रहती हैं लबों पर हर घड़ी ख़ामोशियां
हो गईं मेरा मुक़öर ही मेरी ख़ामोशियां
दिल के आंगन में मचा दी तू ने कैसी खलबली
शोर बन कर गूंजती हैं अब मेरी ख़ामोशियां
ये किसी तूफ़ान की आमद का देती हैं पता
ज़ह्र में डूबी र्हुइंं माहौल की ख़ामोशियां
आम के बाग़ों में देखीं कूकती जब कोयलें
याद आईं कल अकेले में तेरी ख़ामोशियां
उन अभागों के मुक़öर को कहां तक रोइए
जिन के हांेठों पर अज़ल से ही सजी ख़ामोशियां
मुस्कुराता , गुनगुनाता , चहचहाता तू रहे
हमसे देखी जा नहीं सकतीं तेरी ख़ामोशियां
कैसी ख़ामोशी है तारी हर तरफ़ हर चीज़ पर
बात भी करती नहीं मुझ से मेरी ख़ामोशियां
यूं तो सखियों से घिरी रहती हूं मैं हरदम ‘अनु’
शे’र लिखवाती हैं मुझ से रात की ख़ामोशियां