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वो मोअजिज़ा जो न गुज़रा, गुज़र गया होता / अमित गोस्वामी

वो मोअजिज़ा1 जो न गुज़रा, गुज़र गया होता
जो वो मुड़ा था, तो बाहों में भर गया होता

वो चाँद बाम पे बैठा था रात देर तलक
वगरना वक़्त पे मैं अपने घर गया होता

मैं उसकी आँखों में होता, वो मेरे पहलू में
सियाह शब का नसीबा सँवर गया होता

सितम है ख़्वाब भी टूटा तो किस बुलन्दी पर
बिखरना था, तो ये पहले बिखर गया होता

तेरे विसाल के लम्हों की याद थी वरना
मैं तेरे हिज्र में कल रात मर गया होता


1. चमत्कार