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शत बाहु-पद / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
शत बाहु-पद, शत नाम-रूप,
शत मन, इच्छा, वाणी, विचार,
शत राग-द्वेष, शत क्षुधा-काम,--
यह जग-जीवन का अन्धकार!
शत मिथ्या वाद-विवाद, तर्क,
शत रूढ़ि-नीति, शत धर्म-द्वार,
शिक्षा, संस्कृति, संस्था, समाज,--
यह पशु-मानव का अहंकार!
-यह दिशि-पल का तम, इन्द्रजाल,
बहु भेद-जन्य, भव क्लेश-भार,
प्रभु! बाँध एकता में अपनी
भर दें इसमें अमरत्व-सार!
रचनाकाल: मई’१९३५