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शब्द देते हैं निमंत्रण गीत ने तुमको पुकारा / अमन मुसाफ़िर

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शब्द देते हैं निमंत्रण गीत ने तुमको पुकारा
थक गयी स्याही कलम की नाम लिख-लिख कर तुम्हारा

है अँधेरा कक्ष में और अक्षरों से डर रहा हूँ
सूखती है रोशनाई प्राण इसमें भर रहा हूँ
जो न लब पर आ सका घुटता रहा भीतर के भीतर
एक ऐसा नाम होकर मैं जुबाँ पर मर रहा हूँ

तुम मेरे हर दर्द को अस्तित्व तक रख लो बचाकर
जिस तरह कागज कलम के अश्रु को देता सहारा

कष्ट दुख पीड़ा पराजय का भी अभिवादन करूँगा
पीर की हर पत्रिका का नियत सम्पादन करूँगा
आँख में आँसू की तबियत रुदन क्रंदन को छिपाकर
मैं प्रकृति सम्मुख सदा ही प्रेम का वादन करूँगा

अब मिलन पर प्रश्नवाचक चिन्ह तुम लगने न देना
आ भी जाओ अब प्रिये तुमको बुलाकर गीत हारा