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शरशय्या / तेसर सर्ग / भाग 13 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'
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काम क्रोध मद लोभ प्रचार।
पर दुखदायक अत्याचार।।69।।
बुधजन बूझथि सत्यक तथ्य।
कुत्सित चिन्तन थीक अतथ्य।।70।।
सद्सद्वस्तुक राखि विवेक।
आत्मभावसँ दुई हो एक।।71।।
दान तपस्या धैर्यक संग।
स्वाध्याय-प्रवचन प्रसंग।।72।।
सज्जन खेपथि जीवन काल।
धर्मक हित मान लग काल।।73।।
दूनू लोकक साधन एक।
धैर्य पुरस्सर कर्मक टेक।।74।।
कमक वल हो अन्तः शुद्धि।
जहि उद्गमसँ समता बुद्धि।।75।।
कुल गौरब ओ संग प्रभाव।
उभय हेतु सँ उन्नति आब।।76।।