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शरशय्या / तेसर सर्ग / भाग 1 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'

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योगेश्वर कृष्णक हिय पघिलल
देखि दशा अति दीन।
ते नहि रहला आब कनेको
सम्पत्सत्त्वविहीन।।1।।

जगन्नियन्ता परम कृपास
जीति युधिष्ठिर धीर।
पाओल राज्य अखण्ड सुविस्तृत
भाइक संग प्रवीर।।2।।

किनतु भारतक शक्ति भेल छल
जन विनु अतिशय खिन्न।
सुजन स्वगमे गेल अनेको
मानस रहन्हि विखिन्न।।3।।

कानथि कलपथि माथ धुनथि नित
“भेल एहन की हाल?
हाय! विधाता विरचि समेटल
सृष्टिक पट्ट विशाल“।।4।।