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शराफ़त की यहाँ मंडी बहुत ही आज मंदा है / बाबा बैद्यनाथ झा

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शराफ़त की यहाँ मंडी बहुत ही आज मंदा है
जरा तुम ही कहो अपना हृदय क्यों आज गंदा है

नहीं मैं जान पाया था किसी सूरत या सीरत को
नहीं यह भी समझ पाया सयाना यह भी बंदा है

भरोसा था मुझे जिसपर वही अब दे रहा धोखा
कहे पिस्तौल लहराकर रुपय्ये दो ये चंदा है

पढ़ी जब हो नहीं बेटी, वही है झेलती संकट
किसी भी पुत्र से अच्छी मुझे बेटी सुनंदा है

किया था देश का सौदा वही अब जेल में रोता
सजा अब भोगकर सोचे गले में देख फंदा है

हमारे देश की नदियाँ, कई हैं जो सदानीरा
उन्हीं में श्रेष्ठ गंगा है, गगन में श्रेष्ठ चंदा है