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शांतरस कबित्त / रसलीन
Kavita Kosh से
तेरेई मनोरथ को होत है सपनलोक
तूँ ही ह्वै अकास करे नखत उदोत है।
तूँ ही पाँचो तत्त्व सैल तरु पसु पंछी होत
तूँ ही ह्वै मनुख पूजे गोत अवगोत है।
तूँ ही वन नारी फिर ताके रसलीन होत
तूँ ही ह्वै के सत्रु लेत आपन तें पोत है।
जाग परै झूठो ज्यों सपन लोक होत त्योंही
आतमा बिचार लोक जागत को होत है॥1॥