शारदे का नाम नित भजना कभी सीखा नहीं / रंजना वर्मा
शारदे का नाम नित भजना कभी सीखा नहीं
है अलौकिक ज्ञान पथ चलना कभी सीखा नहीं
बिछ रहे लाखों प्रलोभन हैं असत की राह में
सत्य - पथ कांटों भरा बढ़ना कभी सीखा नहीं
प्रेम अनुपम कल्पना है प्रेम में है जिंदगी
प्रेम परिपूरित हृदय लड़ना कभी सीखा नहीं
चीर गिरि का वक्ष जब बहने लगी निर्मल नदी
सिन्धु को कर लक्ष्य तब रुकना कभी सीखा नहीं
दी हमेशा छाँव ठंढी काष्ठ फल अरु पत्र भी
सर उठा कर तरु जिये झुकना कभी सीखा नहीं
यामिनी की गोद मे अगणित सितारे जल रहे
मिट न पाया तम मगर बुझना कभी सीखा नहीं
आंख में ठहरे नयन - जल तो हमेशा ही रहे
वेदना की टीस को कहना कभी सीखा नहीं
जो मिला संतोष उस मे ही सदा हम ने किया
दूसरों का देख धन जलना कभी सीखा नहीं
विश्व के कल्याण की ही कामना करते रहे
किन्तु हिमगिरि शिखर सा गलना कभी सीखा नहीं