भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शारदे की कृपा से चली लेखनी / बाबा बैद्यनाथ झा
Kavita Kosh से
शारदे की कृपा से चली लेखनी
आज सबको लगेगी भली लेखनी
बात जो भी कहूँगा सभी सत्य हैं
सत्य से ही निकलकर फली लेखनी
दुष्ट के साथ रखना नहीं नम्रता
दे हृदय में मचा खलबली लेखनी
तोप तलवार बम या किसी अस्त्र से
है सभी से बहुत ही बली लेखनी
जा न सकती जहाँ सूर्य की रोशनी
देख लो तो मिले हर गली लेखनी
बात सबके भले की अगर यह करे
तो किसी को कभी ना खली लेखनी
जब हृदय से निकलती सरस भावना
तो खिले पद्य की बन कली लेखनी
बात ‘बाबा’ कहें तो लगेगी हँसी
यह बनी रह गयी मनचली लेखनी