(राग भैरव-तीन ताल)
शिव शिव हर हर जपत जग मन-वाणी सौं नित्य।
लहत नित्य आनन्द सो भव दुख मिटत अनित्य॥
दुर्लभ हर-पद-रति परम शिव-स्वरूपको ज्ञान।
पावत सो नर सहज ही शुद्ध हृदय मतिमान॥
(राग भैरव-तीन ताल)
शिव शिव हर हर जपत जग मन-वाणी सौं नित्य।
लहत नित्य आनन्द सो भव दुख मिटत अनित्य॥
दुर्लभ हर-पद-रति परम शिव-स्वरूपको ज्ञान।
पावत सो नर सहज ही शुद्ध हृदय मतिमान॥