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शून्य हूँ मैं / देवेन्द्र आर्य
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शून्य हूँ मैं
मुझसे मिल कर आपकी औक़ात
कुछ नहीं तो दस गुना बढ़ जाएगी
खो गई है ज़िद मेरी
असहाय हूँ
मैं दुखों का संगठित समुदाय हूँ
शब्दों की सीमाओं से हूँ बेदखल
मैं हवा में तैरता अभिप्राय हूँ
प्यास हूँ मैं
अपनी आँखों में बसा लो तुम
बूँद के भीतर नदी भर जाएगी
खींच लेती है कटीली सादगी
प्यार ही है क़ाफ़िरों की बन्दगी
अपने-अपने देखने का ढंग है
पत्थरों में भी छुपी है नाज़ुकी
मौन हूँ मैं
मुझको बुन लो अपने गीतों में
ज़िन्दगी फिर ज़िन्दगी हो जाएगी