भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
श्याम जब भी करीब आते हैं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
श्याम जब भी करीब आते हैं
दीप खुशियों के जगमगाते हैं
कौन कहता कि वो नहीं सुनते
सब उन्हीं को विरद सुनाते हैं
साँवरे की सुखद मनोहर छवि
हम ही' दीवार पर सजाते हैं
नाम जप की अमृत सुधा पी कर
तोष हम जनम जनम पाते हैं
याद करते हैं' कष्ट पड़ने पर
और सुख हो तो' भूल जाते हैं
मोह संसार का नहीं होता
श्याम को भक्त वही भाते हैं
छोड़ देते जगत के' रिश्तों को
श्याम के लोक वही जाते हैं