श्री वल्लभ श्री वल्लभ श्री वल्लभ कृपा निधान अति उदार करुनामय दीन द्वार आयो।
कृपा भरि नैन कोर देखिये जु मेरी ओर जनम जनम सोधि सोधि चरन कमल पायो॥१॥
कीरति चहुँ दिसि प्रकास दूर करत विरह ताप संगम गुन गान करत आनंद भरि गाऊँ।
विनती यह यह मान लीजे अपनो हरिदास कीजे चरन कमल बास दीजे बलि बलि बलि जाऊँ॥२॥