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श्रेष्ठ जनों की निन्दा कर जो / बाबा बैद्यनाथ झा
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श्रेष्ठ जनों की निन्दा कर जो, खुद को समझे विज्ञ महान।
बन जाता वह पात्र हँसी का, जग उसको कहता नादान।।
पर निन्दा में ही रत रहकर, मिलता है जिसको आनन्द।
ऐसे जन ही हो जाते हैं, इस धरती में भार समान।।
नहीं शिष्टता जिसने सीखी, मुख से निकले कड़वे बोल।
कभी नहीं वैसे लोगों को, मिल पाते हैं यश सम्मान।।
उत्तम कर्मों से ही कोई, बनता है सबका प्रिय पात्र।
प्रमुदित होकर प्रभु कर देते, उसको ही अमरत्व प्रदान।।
लक्ष्य पूर्ण कर बाबा जो भी, पा लेता चारों पुरुषार्थ।
आवाहन उसका करने तो, रथ लेकर आते भगवान।।