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संकित हिये सों पिय अंकित सन्देशो बांच्यो / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
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संकित हिये सों पिय अंकित सन्देशो बांच्यो,
आई हाथ थाती-सी सनेही प्रेमपन की ।
नीलम उधर लाल ह्वै कै दमकन लागे,
खिंच गई मधु रेखा मधुर हँसने की ।।
स्याम घन सुरति सुरस बरसन लागो,
वारें आस मोती, आस पूरी अँखियन की ।
माथ सों छुवाती सियराती लाय लाय छाती,
पाती आगमन की बुझाती आग मन की ।।