भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संग्रहालय में सिद्धार्थ / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
किसी ने नहीं देखा था वह बूढ़ा
किसी ने नहीं देखा वह रोगी
सभी ने ढोये शव अपने कंधों पर
पर किसी ने नहीं देखा वह शव
जिसे देखा था तुमने
संग्रहालय में कै़द
मस्तकहीन तुम्हारी प्रतिमा के पीछे
खड़े बच्चे ने टिकाया
अपना सिर तुम्हारे कंधे पर
क्षण भर में जैसे बिजली की कौंध!
सभी ने देखा तुम्हारे देखने को
वही शव!
वही रोगी!!
वही बूढ़ा!!!