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संग हो तुम / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र
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हाँ, बला की जादुई है रात यह
संग हो तुम
राख की पगडंडियाँ रह गईं पीछे
हम नहाये साथ चाँदी की नदी में
यह करिश्मा है तुम्हारा या नदी का
डूबकर हम आ गये अगली सदी में
सोचने को है सलोनी बात यह
संग हो तुम
उस सदी से इस सदी तक की
हमारी नेह-यात्रा है अलग-ही
घुल रहा यह पल हमारी साँस में है
पल नहीं -
यह है रसीला पान मगही
उस सदी की आखिरी सौगात यह -
संग हो तुम
रक्स-ए-दिल जो हो रहा है
आँख में अपनी
वही सूरज बनेगा
अक्स इतने मिलेंगे पिछली सदी के
नये दिन में
आयना अचरज करेगा
हो रही खुश, हाँ, सदी नवजात यह
संग हो तुम