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संझा-भाषा / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
मनियर परबत फनियर नाग
झुटपुट संझा दीपक राग
दीपक-राग अँधेरा गावै
सूरज-चन्दा-नखत बुझावै
झाड़ी-झुरमुट बेर-कुबेर
रही टिटिहरी सबको टेर
रहो ढूँढ़ते देर सबेर
पा जाओगे सूखे बेर
देह न जाँगर नटवर नागर
सूखी गंगा सूखा सागर
धेला एक न धन्ना सेठ
धत्तेरे की पापी पेट
चाहे भादों चाहे जेठ
जेब फटी औ ढीली टेंट
साहेब-सुब्बा कबहुँ न भेंट
चढ़े न भेंट तो मटियामेट
हवा न पानी भात न रोटी
किसके हाथ तुम्हारी चोटी
ये किसकी हरदम फिट गोटी
बहुत महीन बात ये मोटी
बूझो तो जाओगे जाग
जाग पड़ेंगे सोते भाग
ना बूझो तो नापो रस्ता
सदा रहेगी हालत खस्ता