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संवाद / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

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'मुझ में ऐसा कुछ नहीं जैसा तुम समझ रहे हो’
'हीरा अपना मोल कहाँ जानता है’
'वही हीरा काटता और प्राण भी लेता है’
'उस हीरे को खुशी-खुशी निगल जाऊँगा’
'निगलकर मर जाओगे’
'चलो इस बहाने ही सही
मैं तुम्हारे प्यार में अमर हो जाऊँगा!’