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सखी! मोय कारौ नाग डस्यौ / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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सखी ! मोय कारौ नाग डस्यौ।
व्यापि गयौ विष नस-नस बरबस, उर तैं जगत खस्यौ॥
बिस बगराय, भुजंगम भीषन मृदु मधु हँसी हँस्यौ।
हँसतहिं विष अति भयौ मधुर सो, अवसर पाइ धँस्यौ॥
विष भयौ अमिय, नाग पुनि मोहन,मधु मधुरिमा लस्यौ।
करत किलोल कलित अकलन, रस-सुधा-स्रोत निकस्यौ॥
स्याम-मनहि सौं एकमेक मन अमन होइ बिकस्यौ।
कौ जानै कब लौं यौं मोहन मो महँ रह्यौ धँस्यौ॥
जाके नाम कटत भव-बन्धन, सो स्वयमेव ड्डँस्यौ।
ह्वै परतंत्र, सुतंत्र परम सो अपनेहि बंध कस्यौ॥