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सच अभी ऎसा दिख रहा था / सविता सिंह

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सच अभी एक पत्ते जैसा दिख रहा था

सहस्र शिराओं लाखों रंध्रों वाला

ओस की बूंदें जिस पर गिर पड़ी थीं

एक लाल कीड़ा जिस पर अपनी यात्रा

शुरू कर चुका था