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सजनवा बहुरि के आवऽ न! / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
अँखिया दुन्नूं
सावन भादो
न´ साजन संग
खेललूं कादो
ई फागुन आ-आ के हमरा
साले साल सतावे ना
सजनमां बहुरि के आवऽ ना
चिढ़वे सखियन
सब जउराती
भेजलूं लोर से
लिख-लिख पाती
दिन दुर्दिन अइसन कि हमरा
इयाद सतावे ना
कइलन अँगुठा
छू के वादा सोंच में देहिया
हम्मर आधा
अँखिया में बस
पिया सुरतिया
रात जगावे ना
छोट-छोट खेलइ
रंग अबीरा
देख के मनमां
जागइ पीरा
सइतिन कोयली
रात-रात भर
कुहु कुहकावे ना।