सत्तर टेंक अचानक हमला / दयाचंद मायना
सत्तर टेंक अचानक हमला, भारत के ऊपर झुकगे
संग्राम समय धुमे के बादल, सूर्य अस्त गगन ल्हुकगे...टेक
खोदै जोहड़ तोब का गोला, फैर करै गन एक हजार
हैंड गैरनट सूड़ मचावै, अणत-गिणत चालै हथियार
मैंस टेंक नै तोड़न आली, रफल फटा-फट करती वार
अपणे पराए की सूझै कोन्या, सबनै सूझै मारो मार
उल्टा कदम हटाया कोन्या, जित भारत के पग रुकगे...
कदे गगन मैं कदे जमीं पै, सबर जैट कलां सी खां
पांच भागगे हमला करकै, सात मारकै दिए गिरा
देख हौंसला म्हारे जवानां का, भूट्टो चौक-चौक रहज्या
खबर मिली जब आयूब खां नै, या के रचदी मेरे खुदा
हाम मारां थे भारत नै, खुद पाकिस्तानी दल मुकगे...
सन् पैंसठ और आठ अगस्त का सज्जनों सुनो हकीकत हाल
भारत को पकड़न की खातिर, आयूब खां नै गेरा जाल
हर-हर करकै बढ़े सूरमा, निडर भारत माँ के लाल
पन्द्रा सौ दिए मार जान तै, अठारा सै को कर दिया घाल
हमलावर और छाता सैनिक, भारत के बंद म्हं ठुकगे...
अमृतसर और अम्बाले पै, दुश्मन करण लग्या बम-बाट
ग्यारा बम पठानकोट पै, जालन्धर, लुधियाना आठ
फिरोजपुर, फाजिल्का बंगला, जोधपुर ना घाली घाट
हम पहुंचे सरगोदा पींडी, अड्डा तोड़ा सहर कुवाट
स्यालकोट और लाहौर ‘दयाचन्द’, हिन्दू घर-घर म्हं ढुकगे...