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सदा अनुभूति रहती है समायी हर तराने में / रंजना वर्मा
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सदा अनुभूति रहती है समायी हर तराने में।
हमारे देश से बढ़कर नहीं कुछ भी जमाने में।।
हिमालय है मुकुट बन शीश की शोभा बढ़ा देता
यहाँ नित देवता सुख पा रहे गंगा नहाने में।।
हमारे देश की संस्कृति अनोखी है बहुत भाई
लगेंगे शत्रु को वर्षों इसे जग से मिटाने में।।
नहीं छीना कभी हमने दिया है दान ही सब को
हमें आता सदा आनन्द है रिश्ता निभाने में।।
खटकती ही रही सबके नयन में स्वर्ण की चिड़िया
सदा रहते सभी संलग्न हैं इस को उड़ाने में।।
हमारा देश भारत है हमें तो प्राण से प्यारा
नहीं सक्षम है कोई याद ये दिल से हटाने में।।
यहीं पर जन्म पाया है यहीं लें आखिरी साँसें
यही है कामना अपनी बची दिल के खजाने में।।