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सदा इंसान आँखों में कई सपने संजोता है / रंजना वर्मा

सदा इंसान आँखों में कई सपने संजोता है
मगर होता है जो भगवान को मंजूर होता है

जिसे हम चाहते हरदम रहे नयनों में तारे सा
हमेशा आदमी वह ही नजर से दूर होता है

जरा सा वक्त औरों के लिये भी तुम बचा रखना
समझ लो हाथ ही तो दूसरे का हाथ धोता है

रहीं यदि दूरियाँ तो जिंदगी जीना हुआ मुश्क़िल
नयन से अश्रु बह कर ही सदा आँचल भिगोता है

जरा सा देख ले मुस्कान कलियों के अधर की भी
भला क्यों व्यर्थ ही यों नयन जल मोती पिरोता है

रहा दिल तो तेरा लेकिन नहीं तू ही हुआ अपना
यही वह बात है जो याद कर के नित्य रोता है

नहीं मिलता कभी भी कंटकों को प्यार दुनियाँ में
उठाये शीश नित रहता न अपना चैन खोता है