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सपनों का सौदागर आया, ले लो ये सपने ले लो / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
ले लो ले लो सपनों का सौदाग़र आया
ले लो ये सपने ले लो
तुमसे क़िस्मत खेल चुकी तुम क़िस्मत से खेलो
अब तुम क़िस्मत से खेलो
ये रंग-बिरंगे सपने ये जीवन के उजियारे
ये तनहाई के साथी ये भीड़ में संग-सहारे
ये चाँद और सूरज अपने ये अन्धी रात के तारे
सपनों का सौदाग़र ...
इक छलिया आस के पीछे दौड़े तो यहाँ तक आये
हर शाम को ढलता सूरज जाते-जाते कह जाए
वो तय कर लेता मंज़िल जो इक सपना अपनाए
सपनों का सौदाग़र ...