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सबका हमदम बूढ़ा पीपल / अनु जसरोटिया
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सबका हमदम बूढ़ा पीपल
गांव का वो इकलौता पीपल
हर आते जाते को देखे
मुंह से कुछ नहीं कहता पीपल
इस आंगन से उस आंगन तक
तोड़ के बन्धन फैला पीपल
बांध दिया था आस का धागा
मन्दिर में जो देखा पीपल
खिलती जब भी नन्ही कोंपल
मन ही मन मुस्काता पीपल
हर पत्ता है उजला उजला
बारिश में जो भीगा पीपल
तुन्द हवा से लड़ता रहता
तूफ़ानों को सहता पीपल
वो दिन मुझ को याद है अब भी
अपने आंगन में था पीपल
सुनता भाड्ढण नेताओं के
सुन कर गुमसुम रहता पीपल
कौन गया परदेश गांव से
किसका रस्ता तकता पीपल
पंछी करते शब को बसेरा
कब होता है तन्हा पीपल
सबको ठण्ड़ी छाया देता
मेरे गांव का बूढा पीपल