मैं जितना मरती हूँ
मेरी कविता उतनी ही प्राणवान हो उठती है
मैं जितना बुझती हूँ
मेरी कविता उतनी ही जगमगाने लगती है
मैं जितना उदास होती हूँ
मेरी कविता उतनी ही खिलखिलाने लगती है
कब तक घुटकर रहूँगी प्रताडऩाओं उदासियों अंधेरों और दुखों से
मैं जितना मरती हूँ
मेरी कविता उतनी ही प्राणवान हो उठती है
मैं जितना बुझती हूँ
मेरी कविता उतनी ही जगमगाने लगती है
मैं जितना उदास होती हूँ
मेरी कविता उतनी ही खिलखिलाने लगती है
कब तक घुटकर रहूँगी प्रताडऩाओं उदासियों अंधेरों और दुखों से