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सबल / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
मैं जितना मरती हूँ
मेरी कविता उतनी ही प्राणवान हो उठती है
मैं जितना बुझती हूँ
मेरी कविता उतनी ही जगमगाने लगती है
मैं जितना उदास होती हूँ
मेरी कविता उतनी ही खिलखिलाने लगती है
कब तक घुटकर रहूँगी प्रताडऩाओं उदासियों अंधेरों और दुखों से