Last modified on 20 अक्टूबर 2017, at 15:05

सबल / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

मैं जितना मरती हूँ
मेरी कविता उतनी ही प्राणवान हो उठती है
मैं जितना बुझती हूँ
मेरी कविता उतनी ही जगमगाने लगती है
मैं जितना उदास होती हूँ
मेरी कविता उतनी ही खिलखिलाने लगती है

कब तक घुटकर रहूँगी प्रताडऩाओं उदासियों अंधेरों और दुखों से