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सबेरे-सबेरे / देवेन्द्र कुमार
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पौ फटी
हवा लौटी
दिन उगा
मुण्डेरे।
जगह जगह दीख पड़ीं
ईंटों की ढेरियाँ
जैसे ही नींद खुली
सबेरे सबेरे।