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सब उलटा-सीधा करते हो / ध्रुव गुप्त
Kavita Kosh से
सब उलटा-सीधा करते हो
मिलके भी तनहा करते हो
चिंगारी सी क्या अन्दर है
सारी रात हवा करते हो
घर में ज्यादा भीड़ नहीं है
छत पे क्यों सोया करते हो
अपनी थोड़ी कहासुनी थी
चांद से क्यों चर्चा करते हो
थोड़ी फ़िक्र सही लोगों की
तुम थोड़ी ज्यादा करते हो
ख्वाहिश ढेरों, उम्र ज़रा है
वक़्त कहां ज़ाया करते हो
जीना वैसा, मरना वैसा
जैसा आप हुआ करते हो