सभी के दिल में है द्वेष हिंसा सभी दिलों में दुर्भावना है / रंजना वर्मा
सभी के दिल में है द्वेष हिंसा सभी दिलों में दुर्भावना है।
जहान को जीतने से पहले खुद अपने दोषों को मारना है॥
जिधर नज़र उठती है उधर ही है द्वेष हिंसा कि आग जलती
बुझा सकें किस तरह से उसको यही तो सबको विचारना है॥
समय सभी को परख रहा है न यह समझता है गैर अपना
इसे परखने की कोशिशों में है जो लगा उसको हारना है॥
नहीं रही अब वफ़ा कि कीमत है व्यर्थ विश्वास की सारी बातें
हैं लोभ की ज्वाल प्रबल धधकती इसी का तो करना सामना है॥
बिछड़ गये सद्विचार सारे है खो गई सब ईमानदारी
है बढ़ रही रक्त की पिपासा नहीं मुरव्वत की भावना है॥
नहीं कही है दया कि बस्ती हैं डोलते नफ़रतों के साये
मधुर वचन बोलता न कोई बची घृणा कि ही व्यंजना है॥
चलो जलाकर दया का दीपक बसायें फिर प्यार की नगरिया
मृदुल करों से घृणा को पोछें सुभाव डोला उतारना है॥