सभी जवानों के मन में है कसक रही अब भी वो पीर / रंजना वर्मा
सभी जवानों के मन में है कसक रही अब भी वो पीर
अपने ही नेताओं ने जब फोड़ी भारत की तकदीर
आजादी के मतवालों का एक ओर बहता है रक्त
और दूसरी तरफ चलाते थे अपने अपनों पर तीर
बनने को तारीख नयी है उधर रहा घर कोई तोड़
और दूसरी ओर लहू वीरों का बहता जैसे नीर
भगत सिंह जैसे वीरों को मिली सदा फाँसी उपहार
और सुनहरी भोर किसी को मिली गगन की छाती चीर
टुकड़ों में बंट जाये भारत नहीं किसी की थी यह चाह
तड़प उठा था देशभक्त हर बहती थी आँखों से पीर
सिसक सिसक कर सच्चे रोते सुखी हुए झूठे बेइमान
किसे दिखाएँ दिल के छाले आज समस्या है गम्भीर
रक्त बहा जिनका धरती पर उन्हें कौन है करता याद
पद की होड़ मची है ऐसी दिखता नहीं नेक या धीर
तीन पांच कर जोड़ तोड़ कर छीन लिया जैसे नेतृत्व
जिन के हाथों में है सत्ता खींच रहे अबला की चीर
चित्र शहीदों के थे जिन पर वह दीवार हो गयी नष्ट
अब हर ओर दिखाई देती भ्रष्ट जनों की ही तस्बीर