समन्दर सामने और तिश्नगी है / पवन कुमार
समन्दर सामने और तिश्नगी है
अजब मुश्किल में मेरी ज़िन्दगी है
तेरी आमद की ख़बरों का असर है
फिजां में ख़ुश्बुएं हैं ताज़गी है
दरो-दीवार से भी हैं मरासिम
मगर बुनियाद से वाबस्तगी है
वो आते ही नहीं हैं कर के वादा
हमारी मौत उनकी दिल्लगी है
तेरी आँखों से रोशन हैं नज़ारे
तेरी जुल्फों से कोई शब जगी है
सुनाये थे जो नग्में कुर्बतों में
ख़यालों में उन्हीं से नगमगी है
लुटाता रोशनी है बेसबब जो
उसी के हक में देखो तीरगी है
ख़फा मुझसे हो तो मुझको सज़ा दो
जमाने भर से क्या नाराजगी है
तुम्हें हर सिम्त हो मंजिल मुबारक
हमारे हक में बस आवारगी है
बुझा सकता किसी की प्यास मैं भी
समन्दर की यही बेचारगी है
तिश्नगी = प्यास, मरासिम = जुड़ाव, कुर्बत = निकटता, सिम्त = तरफ/ओर/दिशा