समय / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा
लद गए प्यार के दिन
हवा हो गए गुमान के दिन
कल्पना के पंखों से उड़ान के दिन
बीते समय की तरह बीत गए वो दिन
जब हम हँसा करते थे छोटी-छोटी बातों पर
बात बिन बात
कितने उत्साहित होते थे चाँद को देखकर उगता
फूल को देखकर खिलता
तब तुम मेरी बातों और प्रकृति के जाल में
उलझना चाहती थी और मैं उलझाना
मेरे मोहपाश में बंधी तुम, खिंची चली आती थी
मेरे चारों ओर तितली-सी मंडराती थी
वे दिन अब नहीं रहे
जब तुम्हारा हाथ होता था मेरे हाथों में
अब मेरे हाथों में नहीं हैं हाथ तुम्हारे
मेरी नींदें उड़ गई हैं, और न तुम्हारे सपने हैं
और न ही तुम्हारी खिलखिल याद
यह भी याद नहीं कि जीवन क्या था तुम्हारे मिलने से पहले
बीमार को रहता है जैसे
समय पर दवा का ख्याल
समय पर घूमने जाने का विचार
समय पर सोने का ख्याल
दवा खाने में ज़रा चूक होते ही दर्द का ख्याल
तुम भी इसी तरह रह गई हो एक ख्याल भर
अब तो