भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सर्दी का गीत / देवेन्द्र कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब तब सर्द हवा के झोंके
अगल बगल की दीवारों पर
रख जाते हैं
ताक झरोखे।

गोल तिकोना
कोई कोना
क्या अब भी बचा रह गया
याद आ रहा जिनका होना !
हफ़्ते का सबसे उजाड़ दिन
यह इतवार —
न रुकता, रोके।

हाथों की गुमसुम रेखाएँ
लौट रहे सूने पठार से
आधे बच्चे - आधी गायें,
आग जलाकर बाट जोहते
कुछ सवाल
ख़ामोश घरों के।