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सहमे हुए मौसम में कब गुलाब खिले हैं ! / ईश्वर करुण

सहमे हुए मौसम में कब गुलाब खिले है
सहमी हुई आँखों में भी क्या ख्वाब पले है !

अनुबंध किनारों से और नदी से छेड़-छाड़
इन ढुलमूली बातों से क्या सैलाब टले है !

लाये जो इंकलाब लंगोटी में ही रहे
पराज के किरदार के किमखाब सिले है !

केसर हो या हो चाय या गेहूं की रोटियाँ
क्या स्वाद दें, कश्मीर और पंजाब जले है !

घर से गली की मोड़ तक आती थी संग हँसी
खतरे में उसके साथ अब जनाब गले है !

रस्ते हों बन्द ‘ईश्वर’ जो सारे मुकाम के
ऐसे में ‘नमस्कार’ और ‘आदाब’ फले हैं !