Last modified on 24 मार्च 2025, at 23:27

सहरा, जंगल, पर्वत, पानी / अशोक अंजुम

सहरा, जंगल, पर्वत, पानी !
सबकी अपनी रामकहानी!

हैं कबीरपंथी ओहदों पर
थकी-थकी कबिरा की बानी !

'ढाई आखर ढूँढ रहे हैं -
अपने घर का पता, निशानी !

मस्ती, सेक्स, ड्रग्स में डूबी
देश ढूँढ़ता फिरे जवानी !
 
"बेटा सच की राह पर चलना"
"'डैडी ये सब बात पुरानी !"
 
मंहगी दारू, भरा लिफ़ाफ़ा
बाबू फिर भी आनाकानी ?

सारे ज्ञानी बाज़ार ों में
बरसे कम्बल, भीगे पानी !