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सहरा, जंगल, पर्वत, पानी / अशोक अंजुम
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सहरा, जंगल, पर्वत, पानी !
सबकी अपनी रामकहानी!
हैं कबीरपंथी ओहदों पर
थकी-थकी कबिरा की बानी !
'ढाई आखर ढूँढ रहे हैं -
अपने घर का पता, निशानी !
मस्ती, सेक्स, ड्रग्स में डूबी
देश ढूँढ़ता फिरे जवानी !
"बेटा सच की राह पर चलना"
"'डैडी ये सब बात पुरानी !"
मंहगी दारू, भरा लिफ़ाफ़ा
बाबू फिर भी आनाकानी ?
सारे ज्ञानी बाज़ार ों में
बरसे कम्बल, भीगे पानी !