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सहस्त्राब्दी / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
कुछ नहीं होता पल
विलीन होते हैं
दिन/मास/वर्ष/और दशक
बीत जातीहैं सदियाँ
समय के अनन्त प्रवाह में
हल्दी की गाँठ भर है सहस्त्राब्दी
गिनना बन्द करें
दो हज़ार वर्ष पहले
सूली पर टाँग आये थे जिसे
चलो, ढूँढें उसे।