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साँवरे घनश्याम से मन प्यार तो कर ले / रंजना वर्मा
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साँवरे घनश्याम से मन प्यार तो कर ले।
नाम रूपी प्रेम-रस से हृदय घट भर ले॥
इन्द्रियाँ बेचैन रहतीं मोह के कारण
देह गोधन हरि शरण की घास तो चर ले॥
रूपसी माया कहीं जकड़े न बन्धन में
है महा ठगिनी हृदय इस से तनिक डर ले॥
है छिपी मन के निलय में साँवरी सूरत
नेह का आँसू नयन से आज तो झर ले॥
मन बहुत चंचल सदा ही असद को चाहे
हो कृपा नँदलाल की सत्पंथ पग धर ले॥
मृत्यु होती है अटल आयेगी निश्चय ही
क्यों न दे बलिदान अपना देश हित मर ले॥
कर्म करना ही नियति है याद यह रख तू
हार मिलती है तुझे तो मत हृदय पर ले॥