सातों रंग उनके / मुकेश निर्विकार
धरती! तुम उगाओ अधिक पेड़
ओढ़ लो कम्बल हरा
नए साल में
आकाश! सौंप दो मनपाखी को
उन्मुक्त उड़ान तुम
हटा दो पैरों में बँधे जड़ता के पाट
अंतस्तल! तुम भर लो शुष्क गहराइयों में पानी
ले लो गरीब कि आँखों से उधार
सूरज! तुम समझाओ सद् भाव
अपनी किरणों को
कि न लड़े परस्पर विश्वभर में
सातों रंग उनके!
पशुओं! तुम न बाँधों खुद को संप्रदाय के बाड़ों में
आखिर तुम इंसान की तरह विवश नहीं हो
पक्षियो! तुम भरते रहो उड़ान देश-देशांतर यूँ ही
करो उल्लंधन सीमाओं का उड़कर
मुस्तैद सैनिकों के सिर के ऊपर
मनुष्यों ! तुम सहेजो थोड़ी मनुष्यता
विकत अकाल है जिसका तुम्हारे भीतर
पिघलाओ संवेदनाओं की जमी बर्फ
आत्मा के स्व-दीप्त अलाव से
दिशाओ! फैलाओं यह संदेश आज हर ओर
की ऊपर आसमान में नहीं, बल्कि
उगाए हैं इन्सानों ने दिलों में अपने
असंख्य सूरज उम्मीदों के
आज
नए साल में......