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सारंगी-वादक सुल्तान खान का दर्द / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

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रास्ते मेरे आगे चल रहे हैं
ऑफर कई मिल रहे हैं वर्ल्ड ट्यूर पर चलने के
मुम्बई से बुलावे आ रहे हैं
कितना उड़ रहा है मन
पर साथ कहाँ दे रहा है तन
एक प्रस्ताव अभी आया है
यह अलग बात है, मन ने बड़ा कष्ट पाया है

ज़मीन पर नहीं टिका सकता पाँव
नसों ने बंद कर दिया है काम
उठा नहीं पा रहा सारंगी तक का बोझ
जो है मेरा जीवन, बल्कि जीवन से भी ज्य़ादा प्रिय
चक्करघिन्नी हुआ घूम रहा हूँ डॉक्टरों के पास
नहीं निकल पा रहा हूँ बीमारी के इस जाल से
नहीं जानता कब मुक्ति मिलेगी इस हाल से
सुखद समय बीत रहा
जीवन संगीत जैसे रीत रहा
फुटबाल बना मैं ठोकर खा रहा हूँ
एक से दूसरे डॉक्टर के दरवाज़े खटखटा रहा हूँ
मुझे हुआ क्या है, समझ नहीं पा रहा हूँ
सब कहते हैं खान साहब ठीक हो जाओगे
पर कब, कोई नहीं बता रहा है
खुजली है मलहम बदल देंगे
नसों की ताकत के लिए दवा बढ़ा देंगे
लगता है कि जैसे दवाओं की मात्रा के साथ, बीमारी बढ़ रही है
जाने कैसी खुन्नस मुझ पर चढ़ रही है
हौसले खो रहा हूँ
बाहर से हँस रहा हूँ, भीतर रो रहा हूँ

यार मुझे बचा लो अभी मुझ में संभावना है
दुनिया के लिए सबसे सुन्दर तोहफा अभी आना शेष है
दस साल और जमकर काम करना है
कुछ खाली जगहों को भरना है

बहुत दौड़ा पर लम्बी दौड़ अभी बाकी है
मेरी सारंगी और मन के तार
अभी टूटे नहीं हैं
लोगों का मन अभी भरा नहीं है

लेकिन मन-सारंगी के टूटे हों तार तो
कैसे बज पायेगी सारंगी?

एक बार बस एक बार उठ पाऊँ
भूला नहीं हूँ बीते समय को

वे गुनगुनाते हैं-
चिपकी जाएँ अँखियाँ, लेजा लेजा रे,
पिया बसंती रे, अलबेला सजन आयो रे,

और एक दिन वे चले जाते हैं