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सारी बस्ती शीश धुने / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

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'कहे कबीर - सुनो भाई साधो'
कौन सुने अब
 
साधू था जो
उसे मरे पूरा युग बीता
तब से कबिरा की बानी में
लगा पलीता
 
महिमा युग की - सारी बस्ती
शीश धुने अब
 
शाहों ने है ऐसा बाँधा
ताना-बाना
खोया सारे गुणीजनों का
पता-ठिकाना
 
असली-नकली के अंतर को
कौन गुने अब
 
उलटबासियाँ अब की
जिनको कोई न बूझे
अंधों की नगरी में
रस्ता कहीं न सूझे
 
'ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया'
कौन बुने अब