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साल भर पर ऋतुराज आवे / जयराम दरवेशपुरी

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फाग गावऽ हइ
फागुन महीना
एकर हावा के सरगम नगीना

राम परदीप
पपीहा सुनावे
भोर में भैरवी
कोयलिया गावे
बगिया बजवऽ हइ
मिल्लत के बीना

ताल दीपचंदी तन मन झुलावे
धमार पंचम सुर में मिलावे
गंध बांटे पवन में पुदीना

चाँद खेलऽ हइ
चकवा-चकइया
सुरूज सोना के बांटे रुपइया
बड़ दुश्वार एकसर हे जीना

रंग पोरऽ हइ कलियन पर भौंरा
अबीर उड़वऽ हइ कामदेव के छौंरा
सुधि में पागल बिरहिन रात दीना

साल भर पर रितुराज आवे
प्यार से सबके मन गुदगुदावे
रउदा ढरकावऽ
लगलइ पसीना।