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सितम ढ़ाया है मुझ पर हर किसी ने / सिया सचदेव
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सितम ढ़ाया है मुझ पर हर किसी ने
बहुत उलझा दिया है ज़िन्दगी ने
अगर संवेदना दिल में नहीं है
तो फिर तू लाख जा काशी मदीने
बिख़र जाये न मेरा आशियाना
बड़ी मुश्किल से तिनके तिनके बीने
सभी की है यहाँ अपनी ही दुनिया
न मेरा हाल भी पूछा किसी ने
कभी पल भर को घर में भी रहा कर
किया रुसवा तेरी आवारगी ने
मेरे मांझी ये तेरा ही करम है
किनारों पर भी डूबे हैं सफ़ीने