भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सिद्ध प्रयोजन नहीं हुआ तो हार नहीं हो जाती है। / आनन्द बल्लभ 'अमिय'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुवन! वृथा क्रन्दन करना क्या पौरुषता कहलाती है?
सिद्ध प्रयोजन नहीं हुआ तो हार नहीं हो जाती है।

तुमने त्याग तपोबल से इतना संभव कर डाला है।
शुद्ध साधना के बल पर ही ध्यायी अक्षय माला है।
नीलकंठ को राकापति ने आज अघोरी जान लिया।
भले चन्द्र के सप्त अंक ने हमको बैरी मान लिया।

पर सुधि रखना दुग्धमेखला कर्मठता नहलाती है।
सिद्ध प्रयोजन नहीं हुआ तो हार नहीं हो जाती है।

अखिल विश्व में आज हमारे अनुष्ठान का वंदन है।
संयम और तितिक्षा का भूमंडल पर अभिनंदन है।
आज केतु भारत का दक्षिण ध्रुव पर तुमने फहराया।
विक्रम की विक्रम गाथाएँ विक्रम विधु पर लिख आया।

पाहन में भी प्राण प्रतिष्ठित आशा ही करवाती है।
सिद्ध प्रयोजन नहीं हुआ तो हार नहीं हो जाती है।

अंकवार भर के भारत माँ आज तनय को दुलराती।
इस किञ्चित-सी असफलता को धता बताकर झुठलाती।
वत्स! भारती के सुत! सूरज, तम से डरा नहीं करते।
और अनश्वर सत्ता नन्दन, गम से मरा नहीं करते।

कर्मयोग भूषण है नर का, गीता भी बतलाती है।
सिद्ध प्रयोजन नहीं हुआ तो हार नहीं हो जाती है।